मैं माला, पाठकों के समक्ष, अपनी नई कहानी संग्रह रख रही। इसका शीर्षक 'ढलान के स्पीड ब्रेकर' अनायास नहीं, बहुत सोच समझ कर रखी हूं। मेरे लेखन कर्म और फल को देखते हुए, इससे बेहतर शीर्षक कुछ और हो नहीं सकता था। जिन्दगी की ढलान पर अकेली मैं, बिल्कुल हताश, खामोश निरुद्देश्य सी जिन्दगी जी रही थी। पर पैंसठ + की उम्र में लेखन का शौक, अंत की तरफ फिसलती सी मेरी जिन्दगी को एक स्पीडब्रेकर की तरह थाम लिया। लिखना, प्राणवायु सा बन, मेरी घातक चुप्पी को, शब्दों की कलकल बहती नदी में बदल दिया है। मैं चाहती हूं- मेरी बातों से प्रेरित हो, मेरे जैसे उमर दराज लोग अकेलेपन को परे ढकेल जीना सीखें। "सांसलेना कैसी आदत है जियेजाना भी क्या रवायत है" - को खत्म कर अपने शौक को जिंदा करने की शुभकामना।