कोई बीस-पच्चीस साल पहले,
नब्बे के दशक में लिखे हुए
कुछ ‘मुक्त-छन्द’...
स्वतःस्फूर्त उग आए ख्यालों
और जज़्बात के कुछ टुकड़ों को
थोड़े सलीके से सजाने के लिए,
शब्दों को सिलसिलेवार रखने की
बहुत छोटी-सी एक कोशिश...
बस यही है “ख़्वाब टूटने से पहले”.
और कुछ नहीं है...!